आइये हम इन सभी चिन्हों के पीछे छुपे रहस्य और उनके अर्थों से आपका परिचय करते हैं
– गले में सर्प – ऐसा माना जाता है की समुद्र मंथन के समय जब विष निकला तो देवता और असुर दोनो ही भयभीत हो गये और महादेव गए की वे ही कोई रास्ता सुझाएँ। विश्व की रक्षा करने के लिए शिव जी ने विष पि लिया किन्तु इससे पहले की वे विष निगल पाते पार्वती जी ने उनके कंठ को दबा दिया और विष के कारण महादेव का कंठ नीला पड़ गया। नीले कंठ के कारण महादेव को नीलकंठ भी कहा जाता है। पार्वती जी के लिये सदा ही शिव जी के कंठ को दबा के रखना संभव नहीं था और इसलिए उन्होंने सर्प को शिव जी के गले में बांध दिया। कुछ और मान्यताओं के अनुसार शिव जी के गले में सर्प महादेव की डर और मृत्यु पर नियंत्रण को दर्शाता है। शिव जी को पशुपतिनाथ भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है सभी जिव-जन्तुओं के स्वामी।
– शिव की सवारी नन्दी – शिलाद ऋषि को महादेव की तपस्या कर नन्दी नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। एक बार उनके आश्रम पर दो संन्यासियों का आगमन हुआ और नन्दी की सेवा से प्रसन हो कर उन्होंने शिलाद ऋषि को दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया। शिलाद ऋषि ने जब इसका कारण पुछा को संन्यासियों ने कहा की नन्दी अल्पायु है यह सुन शिलाद ऋषि काफी चिंतित रहने लगे। जब नन्दी को पिता की चिंता का कारण पता चला तो उन्होंने शिव जी की घोर तपस्या की। महादेव नन्दी से प्रसन हुऐ और नन्दी को वरदान माँगने को कहा, इस पर नन्दी ने कहा की वो सारा जीवन महादेव के साथ रह कर उनकी सेवा करना चाहता है। शिव जी नन्दी से बहुत प्रसन हुऐ और उन्होंने नंदी को अपना परम मित्र बनाया और बैल का स्वरूप दे अपने वाहन के रूप में स्थान दिया।
– कैलाश पर्वत – महादेव के बारे में यह कहा जाता है की वे कैलाश पर्वत पर विराजमान हैं। कैलाश पर्वत हिमालय पर्वत श्रंखला में है और बहुत ही पवित्र माना जाता है। कैलाश पर्वत उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव बिलकुल बीच में स्थित है और इसलिए इसे धरती का केंद्र भी कहा जाता है। कैलाश को दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव का केंद्र भी माना जाता है। यह आकाश और पृथ्वी के बीच एक ऐसा बिंदु है जहाँ दसों दिशाएँ मिल जाती हैं। कैलाश पर्वत अलौकिक शक्ति का केंद्र है। कैलाश पर्वत पर मानसरोवर जो की सूर्य के आकर की दुनिया की शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और दुनिया की उच्चतम खारे पानी की झीलों में से एक राक्षस जो की चंद्र के आकर की है, स्थित हैं। ये दोनों झीलेँ सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा को दर्शाती हैं। दक्षिण से देखने पर एक स्वस्तिक चिह्न देखा जा सकता है। ऊपरोक्त सभी बातें कैलाश पर्वत को रहस्य्मय बनती हैं।
महादेव की जटाओं चंद्रमा और गंगा – समुद्र मंथन के समय जब शिव जी ने विष पि लिया था तो शरीर का तापमान बढ़ने लगा और तापमान को काम करने लिए शिव जी ने चन्द्रमा को अपनी जटाओं धारण कर लिया। चन्द्रमा को मन का करक भी कहा गया है और शिव जी हमे चन्द्रमा की शीतल प्रवृति के अनुसार अपने मन को शांत रखने का सन्देश हैं। महादेव की जटाओं से गंगा का प्रवाह हमे अहँकार से बचने का संदेश देता है। इसके पीछे की मान्यता है की जब राजा भागीरथ ने गंगा से पृथ्वी पर आने का आग्रह किया तो गंगा ने कहा की अगर वे सीधे स्वर्ग से पृथ्वी पर आयेंगी तो पृथ्वी उनके वेग से ध्वस्त हो जाएगी। राजा भागीरथ ने यह बात भोलेनाथ को बताई और कहा की अब आप ही संसार के उद्दार के लिए के लिये कुछ करें। महादेव ने गंगा को स्वर्ग से अपने सिर पर उतरने को कहा और फिर उसे अपनी जटाओं में कैद कर लिया। गंगा सब कुछ करने के बाद भी शिव जी की जटाओं से निकल ना सकी और अपने अहँकार के लिए क्षमा माँगी। तब शिव ने अपनी जटाओं से गंगा को एक पोखर में छोड़ा और फिर गंगा वहाँ से सात धाराओं में प्रवाहित हुई
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