Ganesh chaturthi ke samapan par visarjan kya batata hai
गणेश चतुर्थी को तीन चरणों में बाँट कर देखा जा सकता है। पहला चरण है आगमन इसमें भक्त गणपति की मूर्ति को मुर्तिकार या बाज़ार से अपने घर, कार्य स्थल या यूं कहें की आयोजन स्थल पर लाते हैं। आगमन की प्रक्रिया में भक़्त पूरी श्रद्धा से ढोल धमाकों के साथ श्री गणेश की मूर्ति को लाते हैं। मूर्ति के आयोजन स्थल पर पहुँचने के बाद दूसरा चरण जो की स्थापना का है शुरू होता है। स्थापना में भक़्त पूरी श्रद्धा और सारी पूजा की प्रक्रिया के साथ श्री गणेश की मूर्ति की स्थापना करता है और मोदक, लड्डू का नवैद्य प्रस्तुत करता है।
स्थापना के स्थल को भक़्त अपनी श्रद्धा और हैसियत के हिसाब से सजाते हैं। सजावट में फूल, लाइट्स और विभिन्न प्रकार की चीजों का उपयोग किया जाता है। हर भक़्त की इच्छा होती है की उसका आयोजन स्थल सबसे सुन्दर हो, कई आयोजन स्थल तो रोज़ सारी सजावट को बदलते है और पुरे ११ दिन अलग अलग सजावट की जाती है।
आयोजन स्थल पर रोज सुबह शाम आरती और प्रसादि का आयोजन किया जाता है। और गणेश चतुर्थी की समाप्ति पर तीसरा चरण जो की विसर्जन है शुरू होता है। विसर्जन करने की प्रक्रिया में भी आगमन जैसे जोश के साथ भक़्त जुलुस के रूप में ढोल ताशे और आजकल डी.जे. के साथ गणपति की मूर्ति को ले कर आयोजन स्थल से विसर्जन स्थल की और प्रस्थान हैं।
विसर्जन करने के पीछे एक सन्देश है की ‘सिर्फ परिवर्तन ही स्थिर है’ ब्रम्हाण्ड भी निरंतर बदल रहा है। श्री गणेश की मूर्ति पानी में जा कर उस में मिल जाती है और सन्देश देती है की आकार अन्तः निराकार हो जाता है लेकिन ऊर्जा बनी रहती है।
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