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क्या साईं बाबा भगवान थे?

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शिर्डी के साईं बाबा एक प्रसिद्ध संत है जिनके भक्त सिर्फ भारतवर्ष में नहीं अपितु पूरे विश्व में है, सभी धर्मों के अनुयाई साईं भक्तों में शामिल है । सिर्फ साईं बाबा ही ऐसे संत नहीं है जिन्हें हिंदू और मुसलमान दोनों मानते हैं राजस्थान के बाबा रामदेव भी ऐसे पीर हैं जिन्हें मुसलमान तो पीर मानते हैं और हिंदू एक महान संत । साईं बाबा को मुसलमान भक्त एक पीर के रूप में देखते हैं और हिंदू एक महान संत अथवा भगवान दत्तात्रेय के अवतार के रूप में देखते हैं। मराठी लोग वासुदेवानंद सरस्वती/टेंबे स्वामी; 1854–1914 का बहुत ही आदर करते हैं, उन्हें दत्तात्रेय भगवान का अवतार माना जाता है, उन्हें जानने वाले लोग यह जानते हैं कि टेंबे स्वामी ने श्री साईं बाबा को करवंद होकर नमन किया था और उनके लिए श्रीफल भी भेजा था अपने भक्तों के हाथों, इस घटना से यह स्पष्ट हो जाता है कि श्री साईं बाबा कितने पूजनीय हैं कि उनके लिए इतने महान और बड़े संत ने भी इतना आदर दिखाया।

कितने ही वामपंथी कितने ही नास्तिक और कितने ही आर्य समाजी भगवत भक्त बन गए केवल बाबा के दर्शन करके इसकी कोई गिनती नहीं है, बाबा को संस्कृत का ज्ञान था सभी वेदों शास्त्रों का ज्ञान था यह कहना तो बहुत ही छोटे मुंह बड़ी बात हो जाएगी क्योंकि जो स्वयं ही हर शास्त्र का उद्गम है उसे इस चीज का ज्ञान है और इस चीज का ज्ञान नहीं है यह कहना कहां तक सही है ।यह तो बहुत ही छोटी सोच होगी अगर कोई कहे कि उसने ऐसा किया तो वह संत नहीं किया उसने ऐसा किया तो वह संत है क्योंकि संत का प्रभाव और संत को समझना केवल एक संत के लिए ही गम्य है ।भला एक ऐसा इंसान जिसने आत्मसाक्षात्कार ही नहीं किया हो वह किसी संत की परख कैसे कर सकता है। एक टूटी फूटी मस्जिद में धूनी रमाने वाला फकीर अपने भक्तों को विष्णु सहस्रनाम कंठस्थ कराने वाला वह फकीर श्री दत्त की उपासना जिस भक्तों ने छोड़ दी थी उस वक्त की दत्त उपासना फिर से शुरू कराने वाला वह फकीर हिंदू है या मुस्लिम इस बहस में पढ़ना हमारे लिए सबसे बड़ी मूर्खता है ।वह हिंदू है या मुस्लिम जिसने जीव मात्र की उत्पत्ति करी है क्या वह हिंदू है या मुस्लिम है या इसाई है यह बहस मेरे गले नहीं उतरती जिसने मुझ नास्तिक को आस्तिक बना दिया जिसने मुझे हरी से प्रेम करना सिखाया जिसकी शरण में आकर गीता का श्रीमद् भागवत पुराण का एक एक शब्द मुझे स्वयं ही अपना अर्थ समझाने लगा है उस फकीर को उस संत को मैं कैसे झूठा कह दूं???

हां यह बात भी सत्य है कि जिसे कमी निकालने की आदत है वह तो कमी निकालेगा ही जो अपने आप को हिंदू धर्म का सनातन धर्म का परिचालक समझ बैठा है जिसने अपना कॉपीराइट समझ रखा है सनातन धर्म पर और ऐसा समझकर वह कुछ भी बकता है तो बता रहे उसके कहने से ना सनातन धर्म बदलता है ना उसका कोई मापदंड बन जाता है क्योंकि संत को समझने का कोई मापदंड अभी तक नहीं बना है संत तो संत है जो उसकी शरण में आ जाता है उस पर कृपा होती ही है और जो बिना शरण में आए ही कमी निकालता रहता है वह अपनी गति खो देता है और उसका कल्याण सर्वथा असंभव हो जाता है। रामदेव पीर पर कोई सवाल नहीं उठाता क्यों क्योंकि जो प्रसिद्ध होता है उसके शत्रु अपने आप ही खड़े हो जाते हैं इसीलिए साईं बाबा के भक्त बढ़ने लगे हैं और इसी वजह से लोगों को चिढ़ होती है और वे अनाप-शनाप बकते हैं, आश्चर्य की बात है कमी निकालने वाले भगवान श्री कृष्ण को भी नहीं छोड़ते और उनके भी चरित्र पर लांछन लगाते हैं, खुद पूरी जिंदगी हर जगह मुंह मारने वाले लोग भी भगवान के चरित्र पर लांछन लगाते हैं जो सदा ब्रह्मचारी है जिसकी सभी जीव आत्माएं पत्नी ही है । अगर किसी संत की सच्ची घटना बताई जाए तो उसे झूठी कहानी बताते हैं और अगर उसकी कितनी भी बुराई बना बना कर कहीं जाए तो उसे सत्य बताते हैं यह तो केवल एक विकृत मनोदशा का उदाहरण ही है।

ययह चित्र श्री टेंबे स्वामी का है ।

सनातन धर्म यह नहीं सिखाता कि अपने को श्रेष्ठ बोलो और दूसरे का अपमान करो सनातन धर्म के अनुयाई ऐसे पाखंड में नहीं पड़ती अगर एक सनातन धर्म के अनुयाई का आचरण समझना है तो श्री ज्ञानेश्वर महाराज को देखिए । परंतु अपने को हिंदू बता कर ढिंढोरा पीटने वाले साईं को चांद मियां बताते हैं इनसे कोई पूछे यह चांद मियां नाम किसने बताया है क्या उन्हें सपने में भगवान दर्शन देकर गए थे कि साईं बाबा चांद मियां है बड़ी ही खिल्ली की बात है कि ऐसी कहानियां लोग कैसे गढ़ लेते हैं । अगर हम यूट्यूब पर भी किसी भी भगवान के चमत्कार जिनके जीवन में नहीं हुएदेखें तो हर भगवान के इक्का-दुक्का ही चमत्कार मिलेंगे परंतु साईं बाबा के भक्तों के अनुभव हजारों लाखों हैं आखिर ऐसा क्यों है, ऐसा नहीं है कि राम लक्ष्मण श्री हरि भगवान महादेव या फिर मां दुर्गा यह सब देवी देवता कृपा नहीं करते, भगवान तो कृपा करते ही है परंतु उन तक पहुंचने के लिए सद्गुरु होना बेहद महत्वपूर्ण है जब सद्गुरु प्रसन्न होते हैं तब सभी देवी देवता प्रसन्न हो जाते हैं और हमें अनुभव देते हैं जिन्हें हम चमत्कार कहते हैं। चमत्कार जिन्हें अब अनुभव नहीं हुए या यूं कहे कि जिनकी भावनाओं को भगवान उत्तर नहीं देते वह बैचारे अभागे ही चमत्कार झूठे हैं ऐसा रोना रोते हैं । जिस पर भगवत कृपा है या सद्गुरु कृपा है वह फालतू की बहस में नहीं पड़ते क्योंकि हमें जो परमसुख है जो परम आनंद है वह मिल चुका है फिर हम इन मूर्खों से बहस करके जीतने की कोशिश क्यों करें हमें किसी के विचारों का खंडन नहीं करना है जो जिसे सोचना है सोचता रहे अच्छा है अगर किसी को कुछ लगता है तो हमें तो अपने कल्याण को देखना है हमारे कल्याण की बागडोर उस सद्गुरु को संभाल ली है जिसने पल-पल पर हमारा साथ दिया है बहस में पढ़ कर निंदा चुगली कर कर कुछ नहीं मिलना है और ना ही हमारा सनातन धर्म हमें निंदा चुगली करना सिखाता है और खासतौर से संतों की तो बिल्कुल भी नहीं।

प्रस्तुत दिए का चित्र अगर कोई आस्थावान होगा तो समझ ही जाएगा कि इसमें किसने दर्शन दी है। यहां तक कि आदि जगद्गुरु शंकराचार्य जो कि मुझे बहुत ही पसंद है और उन के भाष्य मैंने पढे भी है , उन्हीं की जयंती पर उनकी दर्शन की इच्छा भी मेरे गुरु शिर्डी साईं बाबा ने पूर्ण की,

जो समय की मांग होती है उसी के अनुसार संत हमें उपदेश करते हैं, जब भारत देश गुलाम था तब शिर्डी साईं बाबा ने हिंदू मुस्लिम को एकता का पाठ पढ़ाया अगर उस वक्त शिर्डी साईं बाबा हिंदू मुस्लिमों में फूट डलवा दें और किसी एक धर्म को महान कहते, तब कहा जा सकता था कि यह गलत है । भाईचारा सिखाना महानता है ना कि अपने को श्रेष्ठ और दूसरे को नीचा दिखाना।

नासिक के प्रसिद्ध ज्योतिष, वेदज्ञ, 6 शास्त्रों सहित सामुद्रिक शास्त्र में भी पारंगत मुले शास्त्री एक बार नागपुर के धनपति सांईं भक्त बापूसाहेब बूटी के साथ शिरडी पधारे। जब दोनों अन्य लोगों के साथ बाबा के पास पहुंचे तो बाबा उस वक्त बाबा भक्तों को आम खिला रहे थे। फिर बाबा ने केले के छिलके निकालकर अपने पास रखे और गिरी को भक्तों में वितरित करने लगे।

उसी समय मूले शास्‍त्री ने बाबा से उनके हाथ की रेखाएं देखने का निवेदन किया लेकिन बाबा ने उनकी बातों पर ध्यान न देकर उनके हाथों में खाने के लिए केले पकड़ा दिए। मुले शास्त्री ने दो तीन बार विनती की, परन्तु बाबा ने उनकी बात नहीं मानी। आखिर हारकर मुले अपने ठहरने के स्थान पर चले गए और बाबा भी वाड़े से लेंडीबाग के लिए रवाना हो गए। जाते-जाते बाबा ने कहा कि कुछ 'गेरू लाना, आज भगवा वस्त्र रंगेंगे।' बाबा के शब्दों का अभिप्राय किसी की समझ में नहीं आया।

उसके बाद जब बाबा दोपहर को लेंडीबाग से पुन: मस्जिद लौटे तो भक्त उनकी आरती की तैयारी में जुटे हुए थे। आरती का समय जानकर बापूसाहेब बूटी अपने ठहरने के स्थान पर से जाने के लिए उठे और उन्होंने मुलेजी से भी चलने को कहा। लेकिन मुले ने टालने के लिए कहा कि शाम को चलूंगा अभी नहीं। दरअसल, मुले मस्जिद में नहीं जाना चाहते थे। बाबूसाहेब अकेले ही चले गए।

बाबा की आरती सम्पन्न होने के बाद बाबा बूटीसाहेब से बोले, 'जाओ और उस नए ब्राह्मण से कुछ दक्षिणा लाओ|' बूटी ने बाबा की आज्ञा का पालन किया और वे मुले के पास पहुंचे। उन्होंने मुले से कहा, बाबा आपसे दक्षिणा मांगने को कह रहे हैं।'... मुलेजी यह सुनकर हैरान-से रह गए और सोचने लगे मैं तो अग्निहोत्री ब्राह्मण हूं। क्या मुझे बाबा को दक्षिणा देनी चाहिए? फिर सोचने लगे बाबा जैसे पहुंचे हुए संत ने मुझसे दक्षिणी मांगी है और बूटी जैसे करोड़पति दक्षिणा लेने के लिए आए हैं तो निश्चित ही कुछ बात है अब मैं ऐसे में कैसे मना कर सकता हूं? ऐसा विचार करके मुलेजी मस्जिद जाने के लिए चल पड़े। परंतु मस्जिद पहुंचते ही उनका ब्राह्मण होने का भाव फिर जग उठा और वह मस्जिद से कुछ दूर खड़े होकर वहीं से ही बाबा पर पुष्प अर्पण करने लगे।

लेकिन तभी जब उन्होंने ध्यान से देखा तो घोर आश्चर्य हुआ कि बाबा के आसन पर सांईं बाबा नहीं, बल्कि गेरुआ वस्त्र पहने उनके गुरु कैलाशवासी घोलप स्वामी विराजमान हैं। यह देखकर उनकी आंखों पर विश्‍वास नहीं हुआ। उन्होंने आंखें मसली और फिर से ध्यानपूर्वक देखा। सचमुच वहां पर तो भगवा वस्त्र धारण किए उनके गुरुजी की मुस्कुरा रहे थे और सभी उनकी आरती गा रहे थे। उन्हें लगा की कहीं यह भ्रम तो नहीं, स्वप्न तो नहीं, यह सोचकर उन्होंने खुद को चिकोटी काटकर देखा। अब पक्का हो गया था कि यह सपना नहीं था। उन्होंने सोचा कि मेरे गुरु यहां मस्जिद में क्यों और कैसे आ गए।

जब उन्हें विश्वास हो गया कि ये मेरे ही गुरु है तो वे सबकुछ भूलकर मस्जिद की ओर बढ़े और गुरु के चरणों में शीश झुकाकर हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे। वहां उपस्थित बाबा के अन्य भक्त बाबा की आरती गा रहे थे। सभी लोग तो सांईं बाबा को देख रहे थे। लेकिन मुलेजी को तो वहां अपने गुरु ही दिखाई दे रहे थे। वे जोर-जोर से अपने गुरु की स्तुति करने लगे। वहां उपस्थित लोग यह सब दृश्य देखकर बड़ा ही आश्चर्य करने लगे। सभी सोचने लगे की दूर से फूल फेंकने वाला ब्राह्मण अब बाबा के चरणों पर गिरकर कैसे स्तुति करने लगा? लोग बाबा की जय-जयकार कर रहे थे। तो मुले भी घोलपनाथ की जय-जय कर रहे थे।

तक्षण ही मुलेजी ने देखा की उनके गुरु की जगह तो सांईं बाबा खड़े हैं जो हाथ फैलाकर मुझसे दक्षिणा मांग रहे हैं। बाबा की यह विचित्र लीला देखकर मुले अपनी सुधबुध खो बैठे, उनकी आंखों से अश्रुधारा बहने लगी। फिर उन्होंने बाबा को नमस्कार करके दक्षिणा भेंट की और बोले, बाबा आज मुझे मेरे गुरु के दर्शन होने से मेरे सारे संशय दूर हो गए। इसके बाद मुलेजी बाबा के परमभक्त भक्त बन गए।

बुवासाहेब जो कि आधुनिक तुकाराम के नाम से प्रसिद्ध थे और दासगनू महाराज भी मराठा प्रदेश के काफी प्रसिद्ध भगत संत है वह भी श्री शिर्डी साईं बाबा का बेहद आदर करते थे और उन्हें अत्यंत पूजनीय मानते थे ।

साईं बाबा भगवान थे या नहीं यह तो अपना निजी आस्था का प्रश्न है किसी को भगवान मानो या ना मानो रामकृष्ण को भी भगवान मानो या ना मानो किसी का कुछ नहीं जाना है आप अपने कल्याण के अपने जीवन के खुद जिम्मेदार हैं ।

जिस संत ने एक टूटी फूटी मस्जिद में डेरा डाला , जहां नमाज भी नहीं पढ़ी जाती थी, और उधर भी ज्ञानेश्वर महाराज के अभंग और श्री राम कृष्ण हरि के संकीर्तन से गुंजायमान कर दिया ऐसी मस्जिद मस्जिद है या मंदिर है यह तो आपको निश्च य करना है । मुझे तो केवल इतना पता है कि मुझे सनातन धर्म का अर्थ भी उस ही संत ने समझाया है और वह अभी भी मुझे देख रहा है, केवल मुझे ही नहीं वह जीव मात्र को देख रहा है।


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