धनतेरस की पौराणिक कथा | dhanateras kee pauraanik katha
कथा 1
एक बार यमराज ने अपने दूतों से प्रश्न किया- क्या प्राणियों के प्राण हरते समय तुम्हें किसी पर दया भी आती है? यमदूत संकोच में पड़कर बोले- नहीं महाराज! हम तो आपकी आज्ञा का पालन करते हैं। हमें दया भाव से क्या प्रयोजन?
यमराज ने सोचा कि शायद ये संकोचवश ऐसा कह रहे हैं। अतः उन्हें निर्भय करते हुए वे बोले- संकोच मत करो। यदि कभी कहीं तुम्हारा मन पसीजा हो तो निडर होकर कहो। तब यमदूतों ने डरते-डरते बताया सचमुच! एक ऐसी ही घटना घटी थी महाराज, जब हमारा हृदय काँप उठा था।
ऐसी क्या घटना घटी थी? -उत्सुकतावश यमराज ने पूछा। दूतों ने कहा- महाराज! हंस नाम का राजा एक दिन शिकार के लिए गया। वह जंगल में अपने साथियों से बिछड़कर भटक गया और दूसरे राज्य की सीमा में चला गया। फिर? वहाँ के राजा हेमा ने राजा हंस का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन राजा हेमा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया था। ज्योतिषियों ने नक्षत्र गणना करके बताया कि यह बालक विवाह के चार दिन बाद मर जाएगा। राजा के आदेश से उस बालक को यमुना के तट पर एक गुहा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा गया। उस तक स्त्रियों की छाया भी न पहुँचने दी गई।
किन्तु विधि का विधान तो अडिग होता है। समय बीतता रहा। संयोग से एक दिन राजा हंस की युवा बेटी यमुना के तट पर निकल गई और उसने उस ब्रह्मचारी बालक से गंधर्व विवाह कर लिया। चौथा दिन आया और राजकुँवर मृत्यु को प्राप्त हुआ। उस नवपरिणीता का करुण विलाप सुनकर हमारा हृदय काँप गया। ऐसी सुंदर जोड़ी हमने कभी नहीं देखी थी। वे कामदेव तथा रति से भी कम नहीं थे। उस युवक को कालग्रस्त करते समय हमारे भी अश्रु नहीं थम पाए थे।
यमराज ने द्रवित होकर कहा- क्या किया जाए? विधि के विधान की मर्यादा हेतु हमें ऐसा अप्रिय कार्य करना पड़ा। महाराज! एकाएक एक दूत ने पूछा- क्या अकालमृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है? यमराज ने अकाल मृत्यु से बचने का उपाय बताते हुए कहा- धनतेरस के पूजन एवं दीपदान को के विधिपूर्वक करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है। जिस घर में यह पूजन होता है, वहाँ अकाल मृत्यु का भय पास भी नहीं फटकता।
इसी घटना से धनतेरस के दिन धन्वंतरि पूजन सहित दीपदान की प्रथा का प्रचलन शुरू हुआ।
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कथा 2
पौराणिक कथाओं की बात करें, तो कहते हैं कि एक बार भगवान विष्णु मृत्यु लोक की ओर आ रहे थे। ऐसे में मां लक्ष्मीजी भी उनके साथ चलने को तैयार हो गईं। ऐसे में भगवान ने कहा कि आप मेरा कहना मानेंगी, तो आप मेरे साथ चल सकती हैं। इसे मानने के बाद भगवान के साथ वह भी पृथ्वी लोक आ गईं। वहां पहुंचकर भगवान विष्णु ने दक्षिण दिशा में जाने की इच्छा जताई और लक्ष्मीजी को स्थान विशेष पर रुकने को कहा। इसके बाद वे दक्षिण दिशा में चल दिए। मां लक्ष्मी के मन में उस दिशा में जाने की जिज्ञासा हुई और वह चुपके से प्रभु के पीछे चल दीं।
वहां पर उन्होंने एक किसान के खेत से सरसों का फूल लेकर श्रृंगार किया और गन्ने का रस पीया। ऐसा करते समय भगवान विष्णु ने उन्हें देखकर क्रोध में शाप दिया कि किसान की 12 वर्ष तक सेवा करें। लक्ष्मीजी के वास से उस किसान का घर धन से भर गया। 12 साल बाद जब प्रभु उन्हें लेने आए, तो किसान ने उन्हें जाने देने से मना कर दिया। तब माता लक्ष्मी ने उस किसान से कहा कि तेरस के दिन घर को अच्छे से साफ करके रात में घी का दीपक जलाओ। एक तांबे के कलश में रुपए और पैसे भरकर शाम को मेरी पूजा करो। ऐसा करने पर मैं साल भर तक तुम्हारे साथ रहूंगी। ऐसा करने पर किसान के घर मां के आशीर्वाद से धन रहा। ऐसी मान्यता है कि तब से तेरस के दिन धन की देवी की पूजा की परंपरा शुरू हुई और आज भी मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।