सुग्रीव का भाई, अंगद का पिता, अप्सरा तारा का पति और वानरश्रेष्ठ ऋक्ष का पुत्र बाली बहुत ही शक्तिशाली था। देवराज इंद्र का धर्मपुत्र और किष्किंधा का राजा बाली जिससे भी लड़ता था लड़ने वाला कितना ही शक्तिशाली हो उसकी आधी शक्ति बाली में समा जाती थी और लड़ने वाला कमजोर होकर मारा जाता था।
शक्ति का राज क्या था?
रामायण के अनुसार बाली को उसके धर्मपिता इंद्र से एक स्वर्ण हार प्राप्त हुआ था। इसी हार की शक्ति के कारण बाली लगभग अजेय था। उसने कई युद्ध लड़े और सभी में वह जीता। इस स्वर्ण हार को ब्रह्मा ने मंत्रयुक्त करके यह वरदान दिया था कि इसको पहनकर बाली जब भी रणभूमि में अपने शत्रु का सामना करेगा तो उसके शत्रु की आधी शक्ति क्षीण हो जाएगी और यह आधी शक्ति बाली को प्राप्त हो जाएगी। यही बाली की शक्ति का राज था।
रामायण के अनुसार बाली को उसके धर्मपिता इंद्र से एक स्वर्ण हार प्राप्त हुआ था। इसी हार की शक्ति के कारण बाली लगभग अजेय था। उसने कई युद्ध लड़े और सभी में वह जीता। इस स्वर्ण हार को ब्रह्मा ने मंत्रयुक्त करके यह वरदान दिया था कि इसको पहनकर बाली जब भी रणभूमि में अपने शत्रु का सामना करेगा तो उसके शत्रु की आधी शक्ति क्षीण हो जाएगी और यह आधी शक्ति बाली को प्राप्त हो जाएगी। यही बाली की शक्ति का राज था।
बाली ने कई योद्धाओं का हराया-
बाली ने अपनी इस अद्भुत शक्ति के बल पर हजार हाथियों का बल रखने वाले दुंदुभि नामक असुर का वध कर दिया था। दुंदुभि के बाद बाली ने उसके भाई मायावी का भी एक गुफा में वध कर दिया था। रावण ने बाली की शक्ति के चर्चे सुनकर उससे युद्ध करने की ठानी लेकिन बाली ने रावण को अपनी कांख में छह माह तक दबाए रखा था। अंत में रावण ने उससे हार मानकर उसे अपना मित्र बना लिया था।
बाली ने अपनी इस अद्भुत शक्ति के बल पर हजार हाथियों का बल रखने वाले दुंदुभि नामक असुर का वध कर दिया था। दुंदुभि के बाद बाली ने उसके भाई मायावी का भी एक गुफा में वध कर दिया था। रावण ने बाली की शक्ति के चर्चे सुनकर उससे युद्ध करने की ठानी लेकिन बाली ने रावण को अपनी कांख में छह माह तक दबाए रखा था। अंत में रावण ने उससे हार मानकर उसे अपना मित्र बना लिया था।
राम भी बाली के सामने नहीं आए-
एक भ्रम के कारण बाली के मन में सुग्रीव के प्रति नफरत हो गई थी। इसी के चलते बाली ने अपने भाई सुग्रीव की पत्नी को हड़पकर उसको बलपुर्वक अपने राज्य से बाहर निकाल दिया था। हनुमानजी ने सुग्रीव को प्रभु श्रीराम से मिलाया। सुग्रीव ने अपनी पीड़ा बताई और यह भी बताया कि बाली किस तरह दूसरों की शक्ति को अपने भीतर खींच लेता है। फिर प्रभु श्रीराम ने बाली को छुपकर तब तीर से वार कर दिया जबकि बाली और सुग्रीव में मल्ल युद्ध चल रहा था।
एक भ्रम के कारण बाली के मन में सुग्रीव के प्रति नफरत हो गई थी। इसी के चलते बाली ने अपने भाई सुग्रीव की पत्नी को हड़पकर उसको बलपुर्वक अपने राज्य से बाहर निकाल दिया था। हनुमानजी ने सुग्रीव को प्रभु श्रीराम से मिलाया। सुग्रीव ने अपनी पीड़ा बताई और यह भी बताया कि बाली किस तरह दूसरों की शक्ति को अपने भीतर खींच लेता है। फिर प्रभु श्रीराम ने बाली को छुपकर तब तीर से वार कर दिया जबकि बाली और सुग्रीव में मल्ल युद्ध चल रहा था।
चूंकि प्रभु श्रीराम ने कोई अपराध नहीं किया था लेकिन फिर भी बाली के मन में यह दंश था कि उन्होंने मुझे छुपकर मारा। तब प्रभु श्रीराम ने उसे वचन दिया कि तेरी यह पीड़ा दूर की जाएगी। जब प्रभु श्रीराम ने कृष्ण अवतार लिया तब इसी बाली ने जरा नामक बहेलिया के रूप में नया जन्म लेकर प्रभाव क्षेत्र में विषयुक्त तीर से श्रीकृष्ण को हिरण समझकर तब मारा जब वे एक पेड़ के नीचे योगनिद्रा में विश्राम कर रहे थे। इस तरह बाली का दंश या बदला पुरा हुआ।
बाली का हनुमान जी से हुआ जब सामना:
हनुमान और महाबली बाली के सामने की हमें एक कथा मिलती है। बाली को इस बात का घमंड था कि उसे विश्व में कोई हरा नहीं सकता या कोई भी उसका सामना नहीं कर सकता। एक दिन की बात है रामभक्त हनुमान वन में तपस्या कर रहे थे। उस दौरान अपनी ताकत के नशे में चूर बाली लोगों को धमकाता हुआ वन में पहुंचा और चिल्लाने लगा कि कौन है जो मुझे हरा सकता है, किसी ने मां का दूध पिया है जो मुझसे मुकाबला करे।
हनुमान और महाबली बाली के सामने की हमें एक कथा मिलती है। बाली को इस बात का घमंड था कि उसे विश्व में कोई हरा नहीं सकता या कोई भी उसका सामना नहीं कर सकता। एक दिन की बात है रामभक्त हनुमान वन में तपस्या कर रहे थे। उस दौरान अपनी ताकत के नशे में चूर बाली लोगों को धमकाता हुआ वन में पहुंचा और चिल्लाने लगा कि कौन है जो मुझे हरा सकता है, किसी ने मां का दूध पिया है जो मुझसे मुकाबला करे।
हनुमानजी उसी वन में राम नाम जप से तपस्या कर रहे थे। बाली के चिल्लाने से उनकी तपस्या में विघ्न हो रहा था। उन्होंने बाली से कहा, वानर राज आप अति-बलशाली हैं, आपको कोई नहीं हरा सकता, लेकिन आप इस तरह चिल्ला क्यों रहे हैं?
यह सुनकर बाली भड़क गया। उसने हनुमान जी को चुनौती थी और यहां तक कहां की रे वानर तू जिसकी भक्ति करता है मैं उसे भी हारा सकता हूं। राम का मजाक उड़ता देख हनुमान को क्रोध आ गया है और उन्होंने बाली की चुनौती स्वीकार कर ली। तय हुआ कि अगले दिन सूर्योदय होते ही दोनों के बीच दंगल होगा।
अगले दिन हनुमान तैयार होकर दंगल के लिए निकले ही थे कि ब्रह्माजी उनके समक्ष प्रकट हुए। उन्होंने हनुमान को समझाने की कोशिश की कि वे बाली की चुनौती स्वीकार न करे। लेकिन हनुमानजी ने कहा कि उसने मेरे प्रभु श्रीराम को चुनौती दी है। ऐसे में अब यदि मैं उसकी चुतौती को अस्वीकार कर दूंगा तो दुनिया क्या समझेगी। इसलिए उसे तो सबक सिखाना ही होगा।
यह सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- ठीक है, आप दंगल के लिए जाओ, लेकिन अपनी शक्ति का 10वां हिस्सा ही लेकर जाओ, शेष अपने आराध्य के चरण में समर्पित कर दो। दंगल से लौटकर यह शक्ति फिर हासिल कर लेना। यह सुनकर हनुमानजी मान गए और अपनी कुल शक्ति का 10वां हिस्सा लेकर बाली से दंगल करने के लिए चल पड़े।
दंगल के मैदान में हनुमानजी ने जैसे ही बाली के सामने अपना कदम रखा, ब्रह्माजी के वरदान के अनुसार, हनुमानजी की शक्ति का आधा हिस्सा बाली के शरीर में समाने लगा। इससे बाली के शरीर में उसे अपार शक्ति का अहसास होने लगा। उसे लगा जैसे ताकत का कोई समंदर शरीर में हिलोरे ले रहा हो। चंद पलों के बाद बाली को लगने लगा मानो उसके शरीर की नसें फटने वाली है और रक्त बाहर निकलने ही वाला है।
तभी अचानक ही वहां ब्रह्माजी प्रकट हुए और उन्होंने बाली से कहा कि खुद को जिंदा रखना चाहते हो तो तुरंत ही हनुमान से कोसों दूर भाग जाओ, अन्यथा तुम्हारा शरीर फट जाएगा। बाली को कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन वह ब्रह्माजी को यूं प्रकट देखकर समझ गया कि कुछ गड़बड़ है और वह वहां से तुरंत ही भाग खड़ा हुआ।
बहुत दूर जाने के बाद उसे राहत मिली। शरीर में हल्कापन लगने लगा। तब उसने देखा की ब्रह्माजी उसके समक्ष खड़े हैं। तब ब्रह्माजी ने कहा कि तुम खुद को दुनिया में सबसे शक्तिशाली समझते हो, लेकिन तुम्हारा शरीर हनुमान की शक्ति का छोटा-सा हिस्सा भी नहीं संभाल पा रहा है। तुम्हें में बताना चाहता हूं कि हनुमान अपनी शक्ति का 10वां भाग ही लेकर तुमसे लड़ने आये थे। सोचो यदि संपूर्ण भाग लेकर आते तो क्या होता?
बाली यह जानकर समझ गया कि मैंने बहुत बड़ी भूल की थी। बाद में बाली ने हनुमानजी को दंडवत प्रणाम किया और बोला- अथाह बल होते हुए भी हनुमानजी शांत रहते हैं और रामभजन गाते रहते हैं और एक मैं हूं जो उनके एक बाल के बराबर भी नही हूं और उनको ललकार रहा था। मुझे क्षमा करें हनुमान।