ऐसा पढ़ने को मिलता है कि भगवान श्री राम का अपने भक्त हनुमान से युद्ध भी हुआ था। यह युद्ध उस काल के सम्राट ययाति के कारण हुआ था। ययाति प्रजापति ब्रह्मा की पीढ़ी में हुए थे। ययाति की 2 पत्नियां देवयानी और शर्मिष्ठा थीं। देवयानी गुरु शुक्राचार्य की पुत्री थी, तो शर्मिष्ठा दैत्यराज वृषपर्वा की पुत्री थीं। पहली पत्नी देवयानी के यदु और तुर्वसु नामक 2 पुत्र हुए और दूसरी शर्मिष्ठा से द्रुहु, पुरु तथा अनु हुए। ययाति की कुछ बेटियां भी थीं जिनमें से एक का नाम माधवी था। माधवी की कथा बहुत ही व्यथापूर्ण है।
ययाति के प्रमुख 5 पुत्र थे- 1.पुरु, 2.यदु, 3.तुर्वस, 4.अनु और 5.द्रुहु। इन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है। 7,200 ईसा पूर्व अर्थात आज से 9,200 वर्ष पूर्व ययाति के इन पांचों पुत्रों का संपूर्ण धरती पर राज था। पांचों पुत्रों ने अपने- अपने नाम से राजवंशों की स्थापना की। यदु से यादव, तुर्वसु से यवन, द्रुहु से भोज, अनु से मलेच्छ और पुरु से पौरव वंश की स्थापना हुए।
पुराणों में उल्लेख है कि ययाति अपने बड़े लड़के यदु से रुष्ट हो गया था और उसे शाप दिया था कि यदु या उसके लड़कों को राजपद प्राप्त करने का सौभाग्य न प्राप्त होगा।- (हरिवंश पुराण, 1,30,29)। ययाति सबसे छोटे बेटे पुरु को बहुत अधिक चाहता था और उसी को उसने राज्य देने का विचार प्रकट किया, परंतु राजा के सभासदों ने ज्येष्ठ पुत्र के रहते हुए इस कार्य का विरोध किया। (महाभारत, 1,85,32)।
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गुरु विश्वामित्र के निर्देशानुसार भगवान श्री राम को राजा ययाति को मारना था। संकट की इस घड़ी में राजा ययाति ने श्री हनुमान जी से शरण मांग कर चतुराई का परिचय दिया। श्री हनुमान ने माता अंजनी के आदेश पर राजा ययाति को उनकी रक्षा करने का वचन दे दिया। क्योंकि श्री हनुमानजी भी महाज्ञानी और चतुर थे।
राम से भी बढ़कर श्री राम का नाम है : यह तो तय था कि श्री हनुमानजी अपने आराध्य पर अस्त्र या शस्त्र नहीं उठा सकते थे। तब ऐसे में हनुमानजी ने किसी तरह के अस्त्र-शस्त्र से लड़ने के बजाए भगवान श्री राम के नाम को जपना शुरू कर दिया। राम ने जितने भी बाण चलाए सब बेअसर रहे।
ऐसे में विश्वामित्र भगवान हनुमान की श्रद्धाभक्ति और रक्षक को दिए वचन को देखकर विस्मित रह गए और हनुमानजी की इस भक्ति को देखने हुए उन्होंने भगवान राम को इस धर्मसंकट से मुक्ति दिलाई। उन्होंने श्रीराम को युद्ध रोकने का आदेश देकर राजा ययाति को जीवन दान दिया। अस तरह से दोनों के ही वचन की रक्षा हो गई।
हनुमानजी को जब मिला मृत्युदंड : भगवान राम जब राज सिंहासन पर विराजमान थे तब नारद ने हनुमानजी से विश्वामित्र को छोड़कर सभी साधुओं से मिलने के लिए कहा। हनुमानजी ने ऐसा ही किया। तब नारद मुनि विश्वामित्र के पास गए और उन्होंने उन्हें भड़काया। इसके बाद विश्वामित्र गुस्सा हो गए और उन्होंने इसे अपना अपमान समझा।
भड़कते हुए वे श्रीराम के पास गए और उन्होंने श्रीराम से हनुमान को मृत्युदंड देने की सजा का कहा। श्रीराम अपने गुरु विश्वामित्र की बात कभी टालते नहीं थे। उन्होंने बहुत ही दुखी होकर हनुमान पर बाण चलाए, लेकिन हनुमानजी राम का नाम जपते रहे और उनको कुछ नहीं हुआ।
राम को अपने गुरु की आज्ञा का पालन करना ही था इसलिए भगवान श्रीराम ने हनुमान पर बह्रमास्त्र चलाया। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से राम नाम का जप कर रहे हनुमान का ब्रह्मास्त्र भीकुछ नहीं बिगाड़ पाया। यह सब देखकर नारद मुनि विश्वामित्र के पास गए और अपनी भूल स्वीकार की।
ब्रह्मास्त्र था हनुमानजी के लिए बेअसर :हनुमानजी के पास कई वरदानी शक्तियां थीं लेकिन फिर भी वे बगैर वरदानी शक्तियों के भी शक्तिशाली थे। ब्रह्मदेव ने हनुमानजी को तीन वरदान दिए थे, जिनमें उन पर ब्रह्मास्त्र बेअसर होना भी शामिल था, जो अशोकवाटिका में काम आया।
हनुमानजी इस कलियुग के अंत तक अपने शरीर में ही रहेंगे। वे आज भी धरती पर विचरण करते हैं।
चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥
संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई, जहां जन्म हरिभक्त कहाई॥
और देवता चित्त ना धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
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आपने आज तक यही सुना होगा की हनुमान भगवान् राम के परम भक्त थे। लेकिन बहुत ही कम लोग जानते हैं की एक बार हनुमान जी और राम जी के बीच भी युद्ध हुआ था ।
हनुमान को राम का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। कहते हैं कि दुनिया चले न श्रीराम के बिना और रामजी चले न हनुमान के बिना, लेकिन फिर भी राम और हनुमान में युद्ध क्यों हुआ था आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा…
एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान राम जब अपने 14 वर्ष के वनवास के बाद वापस अयोध्या लोटे तो उन्होंने विशाल अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करवाया। इस अश्वमेध में अनेको देशो के राजा और महान ऋषि मुनि शमिल थे। इस यज्ञ में ऋषि मुनियो के साथ भगवान राम के गुरु विश्वामित्र भी पधारे थे जिनका राजा ययाति द्वारा अनादर हो गया।
विश्वामित्र उस राजा से अत्यंत क्रोधित हुए तथा क्रोध में उन्होंने अपने शिष्य राम से कहा की सूर्यास्त होने से पहले मुझे इस राजा का कटा हुआ सर मेरे समक्ष चाहिए अन्यथा तुम्हे मेरे श्राप का सामना करना पड़ेगा। विश्वामित्र की बात सुन राजा ययाति अपनी प्राण की रक्षा हेतु वहां से भागा तथा राम से बचने का उपाय सोचने लगा। वह जानता था की हनुमान के अलावा किसी व्यक्ति में भी इतना सामर्थ्य नही की वह उस राजा की राम से रक्षा कर सके परन्तु उसे यह भी पता था की अगर वह सीधे हनुमान जी के पास जाकर राम से अपनी प्राणो की रक्षा के लिए कहे तो हनुमान जी राजा की मदद नही करेंगे।
उपाय सूझते ही राजा हनुमान जी की माता अंजना के पास गया तथा उन्हें पूरी बात कहे बिना ही उनसे अपने प्राण रक्षा का आशीर्वाद ले लिया। आशीर्वाद पाते ही उसने माता अंजना से पूरी बात कहि तब माता अंजना ने हनुमान से राजा की रक्षा भगवान राम से करने को कहि। हनुमान जी अपने आराध्य देव प्रभु राम से युद्ध नही लड़ना चाहते थे वही वे अपनी माता की आज्ञा को भी नही ठुकरा सकते थे।
हनुमान जी पूरी तरह से धर्मसंकट में फस चुके थे आखिर करे तो करे क्या। तभी हनुमान जी को एक युक्ति सूझी, उन्होंने राजा को आदेश दिया की तुम सरयू नदी के तट पर जाओ तथा वहा पहुंच कर राम का नाम जपना शुरू कर दो। हनुमान जी स्वयं अपने आकर को छोटा कर राजा के पीछे जाकर बैठ गए। श्री राम उस राजा को ढूढ़ते हुए सरयू नदी के तट पर पहुंचे तथा उन्होंने राजा को जय श्री राम नाम जपते हुए पाया। उसे अपना भक्त जान राम वापस अयोध्या की और लोट चले तथा विश्वामित्र को उन्होंने पूरी बात बताई परन्तु विश्वामित्र अपनी बात पर अडिग रहे तथा राजा के वध की जिद करने लगे।
राम बड़ी दुविधा में थे की उन्हें अपने ही भक्त का वध करना पड़ेगा। ऐसे समय में वे हनुमान को याद कर रहे थे परन्तु उन्हें हनुमान कहि दिखे नही। उन्हे विश्वामित्र के जिद के आगे वापस सरयू नदी तट पर जाना पड़ा।
राम ने अपने बाणो से उस राजा पर वार किया तो राम नाम के जप के प्रभाव से सारे बाण स्वतः ही आकाश मार्ग में गायब होने लगे। तब राम ने बाणो का कोई असर न होते देख दिव्यास्त्रों का प्रयोग राजा पर करने की सोची। राम ने पहले शक्तिबाण का प्रयोग राजा पर किया, सूक्ष्म रूप में राजा के पीछे बैठे हनुमान ने राजा से सिया राम का नाम पुकारने को कहा क्योकि सिया राम जपने वाले पर शक्तिबाण का असर नही होता।
राम के द्वारा छोड़ा गया शक्तिबाण राजा के पास पहुचने से पहले बीच मार्ग में ही नष्ट हो गया। इसके बाद राम ने अनेको दिव्य बाण छोड़े जो उन्ही नाम के प्रभाव से बेअसर हो गए। अंत में जप राजा ने जय सियाराम के नाम के साथ ही जय हनुमान भी बोलना शुरू किया तो इन नामो में छिपे शक्ति और भक्ति के प्रभाव से राम को मूर्छा आने लगी।
तब ऋषि वशिष्ट, विश्वामित्र से बोले की आप को राम जी के प्राण इस तरह संकट में नही डालने चाहिए क्योंकि राम चाह कर भी उनका नाम जपने वाले भक्त का वध नही कर सकते। विश्वामित्र ने ऋषि विशिष्ट की बात को उपयुक्त मान व राम की बिगड़ती दशा को देखा अपना वचन राम से वापस ले लिया।
स्थिति को सम्भलता देख हनुमान अपने अकार को पुनः बढ़ाकर राजा के पीछे से बहार निकले तथा राम के समक्ष जाके उन्हें पूरी बात कहि। राम प्रसन्न होकर वहा उपस्थित सभी लोगो से बोले की स्वयं भगवान से भी बढ़कर ताकत उनके सच्चे भक्त में होती है, आज हनुमान ने यह बात सिद्ध करके दिखलाई है !
इसलिए कहा भी है की "राम से बड़ा राम का नाम"
धन्यवाद आपका ।
नोट: कहानी पौराणिक कथाओं से ली गई है किसी भी त्रुटी के लिए क्षमाप्रार्थी ।