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महाभारत में भगवन श्री कृष्ण की जगह श्री राम होते तो क्या होता?

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यह प्रश्न एक काल्पनिक प्रश्न है पर एक बहुत ही अच्छा प्रश्न है। मैं आपको तिन घटनाओं का वर्णन करके बताता हूँ की उस परिस्तिथि भगवान श्री कृष्ण की जगह श्रीराम होते तो क्या होता।
1.पहली घटना : जब भगवान श्रीकृष्ण सम्यन्तक मणि को ढूंढते हुए एक गुफा में पहुंचे तो उनका सामना रामायण काल के जामवंत जी से हुआ। वह मणि जामवंत के पास थी। भगवान श्रीकृष्ण का जाम्बवंत से द्वंद्व युद्ध हुआ था। जाम्बवंत जब युद्ध में हारने लगे तब उन्होंने सहायता के लिए अपने आराध्यदेव प्रभु श्रीराम को पुकारा। आश्चर्य की उनकी पुकार सुनकर भगवान श्रीकृष्ण को अपने राम स्वरूप में आना पड़ा। जाम्बवंत यह देखकर आश्चर्य और भक्ति से परिपूर्ण हो गए। भगवान् श्री राम ने ही जाम्बवंत को वरदान दिया था की वो श्री कृष्ण रूप में उसकी इच्छा पूरी करेंगे। मतलब यह कि होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
2.दूसरी घटना : एक बार अर्जुन का सामना हनुमानजी से हुआ। अर्जुन ने कहा कि यदि मैं होता उस समय तो बाणों से ही सेतु बना देता। इतनी मेहनत करने की जरूरत ही नहीं होती। हनुमानजी से कहा कि अच्छा ऐसी बात है तो अभी बना दो यदि वह सेतु मेरे पग से टूट गया तो? अर्जुन ने कहा कि मैं अग्नि में चला जाऊंगा। हनुमान ने कहा मैं हारा तो मैं चला जाऊंगा।
जब यह बात श्रीकृष्ण को पता चली तो वे प्रकट हो गए क्योंकि वह जानते थे कि यह सेतु हनुमान के पैरों से टूट जाएगा और मेरा सखा अर्जुन खुद को भस्म कर लेगा और नहीं टूटा तो मेरे भक्त हनुमान पर संकट आ खड़ा होगा। धर्म संकट की इस घड़ी में श्रीकृष्ण ने दोनों को ही बचाया था। यह कथा भी बड़ी रोचक है। इसी घटना के बाद राम के परमभक्त हनुमानजी महाभारत के युद्ध में उन्हीं के आदेश से रथ के उपर ध्वज में विराजमान हो गए थे। मतलब यह कि होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
3.तीसरी घटना : यदुओं के आपसी युद्ध के बाद भगवान श्रीकृष्ण प्रभास क्षेत्र में एक वृक्ष ने नीचे लेटे थे। उनके पैर को लेटा हुआ मृग समझकर एक भील जरा ने छुपकर उन पर विषयुक्त बाण चला दिया। जब उसे पता चला तो यह बहुत पछताया। तब भगवान ने कहा कि तू चिंता मतकर आज तेरा बदला पूरा हुआ, क्योंकि मैंने भी तूझे छुपर तीर मारा था जब‍ तू अंगद का पिता और सुग्रीव का भाई बाली था। मतलब यह कि होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
दरअसल, भगवान राम रूप में भी होते तो वही करते जो उन्होंने श्री कृष्ण रूप में किया। असल में उन्होंने स्थति के अनुसार रूप लिया और युग के अनुसार उन्होंने कर्म किए। कहते हैं कि श्री कृष्ण के मखान चोरी, रास लीला, गोवेर्धन धारण, गोपिया के संग नटखट लीला करना, शिशुपाल को मारना, कंस को मारना, नरकासुर से 16000 लड़कियों को छुड़ाना और महाभारत के युद्ध की रचना करना। इन सभी का लिंक श्रीराम के जीवन से जुड़ा हुआ है।
गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरित मानस में कहते हैं कि
होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा। गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥
अर्थात : जो कुछ राम ने रच रखा है, वही होगा। तर्क करके कौन शाखा (विस्तार) बढ़ावे। (मन में) ऐसा कहकर शिव भगवान हरि का नाम जपने लगे और सती वहाँ गईं जहाँ सुख के धाम प्रभु राम थे।

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