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Makar Sankranti Festival 2020: मकर संक्रांति का वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व, भारत ही नहीं पूरी दुनिया का महापर्व

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Surendranath Guptaसुरेंद्र नाथ गुप्ता Updated Tue, 14 Jan 2020 05:24 PM IST
मकर संक्रांति
मकर संक्रांति - फोटो : Amar Ujala
संक्रान्ति का अर्थ है, 'सूर्य का एक राशि से अलगी राशि में संक्रमण (जाना)'। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास है। पूरे वर्ष में कुल 12 संक्रान्तियां होती हैं। लेकिन इनमें से चार संक्रांति मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति महत्वपूर्ण हैं। पौष मास में सूर्य का धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश मकर संक्रान्ति रूप में जाना जाता है।
सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियां चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है, इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही पड़ता है जबकि अन्य पर्वों की दिनांक बदलती रहती है। मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है और इसे सम्पूर्ण भारत और नेपाल के सभी प्रान्तों में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। 

उत्तर भारत में इस पर्व को 'मकर सक्रान्ति, पंजाब में लोहडी, गढ़वाल में खिचडी संक्रान्ति, गुजरात में उत्तरायण, तमिलनाडु में पोंगल, जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति कहते हैं। 
 

मकर संक्रांति का ज्योतिषीय और वैज्ञानिक महत्व 

विश्व की 90% आबादी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में ही निवास करती है अतः मकर संक्रांति पर्व न केवल भारत के लिए बल्कि लगभग पूरी मानव जाति के लिए उल्लास का दिन है।
विश्व की 90% आबादी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में ही निवास करती है अतः मकर संक्रांति पर्व न केवल भारत के लिए बल्कि लगभग पूरी मानव जाति के लिए उल्लास का दिन है। - फोटो : फाइल फोटो
सामान्यतः सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। सर्वविदित है कि पृथ्वी की धुरी 23.5 अंश झुकी होने के कारण सूर्य छः माह पृथ्वी  के उत्तरी गोलार्द्ध के निकट होता है और शेष छः माह दक्षिणी गोलार्द्ध के निकट होता है।

मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध के निकट होता है अर्थात् उत्तरी गोलार्ध से अपेक्षाकृत दूर होता है जिससे उत्तरी गोलार्ध में रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से उत्तरी गोलार्ध में रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा सर्दी की ठिठुरन कम होने लगती है। अतः मकर संक्रान्ति अन्धकार की कमी और प्रकाश की वृद्धि की शुरुआत है।

दरअसल, समस्त जीवधारी (पशु,पक्षी व् पेड़ पौधे भी) प्रकाश चाहते हैं। संसार सुषुप्ति से जाग्रति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होती है। प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है और अन्धकार अज्ञान का।

भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है, इसलिए तमसो मा ज्योतिर्गमय का उद्घोष करने वाली भारतीय संस्कृति में मकर संक्रांति अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतवर्ष के लोग इस दिन सूर्यदेव की आराधना एवं पूजन कर, उसके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं।

ध्यान देने योग्य है कि विश्व की 90% आबादी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में ही निवास करती है अतः मकर संक्रांति पर्व न केवल भारत के लिए बल्कि लगभग पूरी मानव जाति के लिए उल्लास का दिन है।

सम्पूर्ण विश्व के सभी उत्सवों में संभवतः मकर संक्रांति ही एकमात्र उत्सव है जो किसी स्थानीय परम्परा, मान्यता, विश्वास या किसी विशेष स्थानीय घटना से सम्बंधित नहीं है, बल्कि एक खगोलीय घटना, वैश्विक भूगोल और विश्व कल्याण की भावना पर आधारित है और सम्पूर्ण मानवता (उत्तरी गोलार्ध की 90% आबादी) को आनंद देने वाला है।

कहते हैं कि प्राचीन भारत में भू मध्य रेखा से ऊपर यानी उत्तरी गोलार्ध को भूलोक और भू मध्य रेखा से नीचे यानी दक्षिणी गोलार्ध को पाताल लोक माना जाता था। अतः मकर संक्रांति एक ऐसी खगोलीय घटना है जो सम्पूर्ण भूलोक में नव स्फूर्ति और आनंद का संचार करती है।

मकर संक्रांति न केवल भारत राष्ट्र का बल्कि सम्पूर्ण मानवता का उत्सव है। यद्यपि मकर संक्रांति सम्पूर्ण मानवता के उल्लास का पर्व है पर इसका उत्सव केवल हिन्दु समाज मनाता है क्योंकि विश्व बंधुत्व, विश्व कल्याण और सर्वे भवन्तु सुखिनः की उदात्त भावना केवल भारतीय संस्कृति की विशेषता है।

मकर संक्रांति की पौराणिक मान्यताएं 

इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूंकि शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं, अतः इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। 
इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूंकि शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं, अतः इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।  - फोटो : फाइल फोटो
ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूंकि शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं, अतः इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। 

शास्त्रों के अनुसार, देवताओं के दिन की गणना इस दिन से ही प्रारम्भ होती है। सूर्य जब दक्षिणायन में रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्रि व उत्तरायण के छ: माह को दिन कहा जाता है। दक्षिणायन को नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। भगवद् गीता के अध्याय ८ में भगवान कृष्ण  कहते हैं कि उत्तरायण के छह माह में देह त्याग करने वाले ब्रह्म गति को प्राप्त होते हैं जबकि और दक्षिणायन के छह माह में देह त्याग करने वाले संसार में वापिस आकर जन्म मृत्यु को प्राप्त होते  हैं।

अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम् ।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ৷৷
धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण षण्मासा दक्षिणायनम्।
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी  प्राप्य निवर्तते ৷৷
शुक्ल कृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते।
एकया  यात्यनावृत्ति  मन्ययावर्तते  पुनः  ৷৷

यही कारण था कि भीष्म पितामह महाभारत युद्ध समाप्ति के बाद मकर संक्रान्ति की प्रतीक्षा में अपने प्राणों को रोके अपार वेदना सह कर शर-शैया पर पड़े रहे थे। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था।

कहा जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी और भगीरथ के पूर्वज महाराज सगर के पुत्रों को मुक्ति प्रदान की थी, इसीलिए आज के दिन बंगाल में गंगासागर तीर्थ में कपिल मुनि के आश्रम पर एक विशाल मेला लगता है जिसके बारे में मान्यता है कि "सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार"।

तीर्थराज प्रयाग में लगने वाले कुम्भ और माघी मेले का पहला स्नान भी इसी दिन होता है। प्रयागराज में एक माह तक चलने वाले कुम्भ मेले में सारे भारत और विदेशों तक से लाखों/करोड़ों  हिंदू पहुंचते हैं। तीर्थराज प्रयाग का कुम्भ विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है।  

भारत में मकर संक्रान्ति का महत्व 

संक्रांति के पर्व को देश में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है।
संक्रांति के पर्व को देश में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। - फोटो : फाइल फोटो
मकर संक्रान्ति की परम्पराएं  
मकर संक्रान्ति के दिन गंगा स्नान, सूर्योपासना व तीर्थ स्थलों पर स्नान दान विशेष पुण्यकारी होता है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगा स्नान एवं गंगा तट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थ राज प्रयाग एवं गंगा सागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गई है। मकर संक्रांति के दिन तिल का बहुत महत्व है। कहते हैं कि तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल के तेल द्वारा शरीर में मालिश, तिल से ही यज्ञ में आहुति, तिल मिश्रित जल का पान, तिल का भोजन इनके प्रयोग से मकर संक्रांति का पुण्य फल प्राप्त होता है और पाप नष्ट हो जाते हैं।

आयुर्वेद में तिल को कफ नाशक, पुष्टिवर्धक और तीव्र असर कारक औषधि के रूप में जाना जाता है। यह स्वभाव से गर्म होता है इसलिए इसे सर्दियों में मिठाई के रूप में खाया जाता है। गजक, रेवड़ियां और लड्डू शीतऋतु में ऊष्मा प्रदान करते हैं। 

मकर संक्रांति को अनेक स्थानों पर पतंग महोत्सव मनाए जाते हैं। प्राचीन भारतीय साहित्य में भी पतंग उड़ाने का उल्लेख मिलता है। रामचरित् मानस के बालकाण्ड में श्री राम के पतंग उड़ाने का वर्णन है- 'राम इक दिन चंग उड़ाई, इन्द्र लोक में पहुंची जाई।' बड़ा ही रोचक प्रसंग है। पंपापुर से हनुमान जी को बुलवाया गया था, तब हनुमान जी बाल रूप में थे। जब वे आए, तब 'मकर संक्रांति' का पर्व था, संभवतः इसीलिए भारत के अनेक नगरों में मकर संक्रांति को पतंग उड़ाने की परम्परा है।

यह समय सर्दी का होता है और इस मौसम में सुबह का सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थ्य वर्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। अतः पतंग उड़ाने का एक उद्देश्य कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना भी है।  
 

अलग-अलग राज्यों में मकर संक्रांति 

मकर संक्रांति को हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व 13 जनवरी को ही मनाया जाता है।
मकर संक्रांति को हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व 13 जनवरी को ही मनाया जाता है। - फोटो : अमर उजाला
हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व 13 जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियां आपस में बांटकर खुशियां मनाते हैं। बहुएं घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं। नई बहू और नवजात बच्चे के लिए लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। 

राजस्थान व् गुजरात में इस दिन पतंग उड़ाने की परम्परा है। अहमदाबाद में गुजरात पर्यटन विभाग द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पतंगोत्सव का आयोजन किया जाता है। इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं, साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्य सूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं। 

उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से 'दान का पर्व' है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती की त्रिवेणी चूंकि अब सरस्वती नहीं है, पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसकी शुरुआत मकर संक्रान्ति से होती है। संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है।

गोरखपुर में मकर संक्रांति 
गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति के पर्व पर खिचड़ी चढ़ाने तड़के से ही जनसैलाब उमड़ पड़ता  है। मकर संक्रांति के महापर्व पर लाखों श्रद्धालु गोरखनाथ मंदिर में गुरु गोरक्षनाथ को खिचड़ी (चावल-दाल, उड़द) चढ़ाकर अपनी आस्था व श्रद्धा निवेदित करते हैं।

खिचड़ी चढ़ाने के पहले मंदिर में तड़के तीन से चार बजे तक श्रीनाथ जी की विशिष्ट पूजा-आरती होती है। इसके बाद महाप्रसाद से गुरु गोरखनाथ का भोग लगता है। इसके बाद भारत राष्ट्र की सुख समृद्धि की कामना के साथ मंदिर की ओर से शिवावतार बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाते हैं। इसके बाद पहली खिचड़ी नेपाल राज परिवार की ओर से श्रीनाथ जी को अर्पित की जाती है। चार बजते ही मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाते हैं।   

बिहार और बंगाल में मकर संक्रांति 
बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाता हैं। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है। बंगाल में इस पर्व पर गंगा सागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। 

असम में मकर संक्रांति 
असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं। उत्सव का पहला दिन उरुका कहलाता है। रात्रि में सामूहिक भोज होता है जिसमें नए अन्न का प्रयोग करते हैं और तिलपीठा बनाते हैं। मुर्गे और भैंसो के युद्ध आयोजित किये जाते हैं। लोक गीतों व् लोक नृत्यों की धूम होती है।    

महाराष्ट्र में मकर संक्रांति 
महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं -"लिळ गूळ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला" अर्थात् तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो। इस दिन महिलाएं आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बांटती हैं। तिल चावल और चीनी को पका कर चाशनी से आभूषण बनाकर बच्चों को भी बांटे जाते हैं। 

आंध्र प्रदेश में मकर संक्रांति 
आंध्र प्रदेश व् तेलंगाना में  इस दिन चावल के आटे से आंगन में मग्गू की रचना करते हैं और उसके पास बैठ कर कन्याएं गीत गाती हैं। अगले दिन मौहल्ले में अलाव जला कर लोग एकत्र होते है और लोक गीत व् नृत्य से मनोरंजन करते हैं। 

तमिलनाडु में मकर संक्रांति 
तमिलनाडु में इस त्योहार को एक ऋतु उत्सव पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल। पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन सूर्य की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में नई फसल के चावल व गन्ने के रस की पोंगल (खीर) बनाई जाती है। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं।

इस दिन पशुओं को सजाते हैं और तमिलनाडु का प्रसिद्ध खेल जल्लिकट्टु होता है। इस खेल में बैल के सींग पर ईनाम की राशी बांधी जाती है और जो साहसी युवक आक्रामक बैल को साधता है उसे वह राशि दी जाती है। तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। चौथे दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।

इसी तरह कर्नाटक में मकर संक्रांति के दिन तिरुपति बाला जी की यात्रा का समापन होता है। केरल में इस दिन सबरीमाला मंदिर और त्रिचूर के कोडुगलूर देवी मंदिर में भक्तों की भीड़ एकत्र होती है।

नेपाल में मकर संक्रान्ति को माघे-संक्रान्ति, सूर्योत्तरायण और थारू समुदाय में माघी कहा जाता है। इस दिन नेपाल सरकार सार्वजनिक छुट्टी देती है। थारू समुदाय का यह सबसे प्रमुख त्योहार है। नेपाल के बाकी समुदाय भी तीर्थस्थल में स्नान करके दान-धर्मादि करते हैं और तिल, घी, शर्करा और कन्दमूल खाकर धूमधाम से मनाते हैं। वे नदियों के संगम पर लाखों की संख्या में नहाने के लिए जाते हैं। तीर्थस्थलों में रूरूधाम (देवघाट) व त्रिवेणी मेला सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है।

मकर संक्रांति को सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है। यह भारत का राष्ट्रीय पर्व है। पर्व एक है पर इसको मनाने की परम्पराएं अलग-अलग हैं। इस पर्व के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है। विशाल भारत की विविधताओं में अन्तर्निहित एकता और अखण्डता का अनुपम उदाहरण है मकर संक्रांति। 

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