ये मंत्र बाबा अवढ़रदानी का है , वो आंखे मूंद कर भस्म लगाए बैठा है , उन्हें मंत्र , वाणी या उच्चारण से कोई मतलब नहीं है , वो जल से भी खुश होते हैं , प्रेम से पुकारो किसी मंत्र की जरूरत नहीं है ।
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एक कहानी बताना चहूंगा
बिहार के गांव विस्फी में विद्यापति नाम के कवि थे जो की भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। उनकी भक्ति और रचनाओं से खुश होकर भगवान शिव ने उनके घर नौकर बनने की इच्छा हुई। इसके बाद भगवान शिव एक साधारण सा जाहिर गंवार के भेज में कवि विद्यापति के घर पहुंचे। शिव जी ने कवि को अपना नाम उगना बताया और विद्यापति से नौकरी पर रखने की इच्छा जताई। कवि विद्यापति की आर्थिक स्थति ठीक न होने के कारण उन्होने उगना अर्थात भगवान शिव को नौकरी पर रखने से मना कर दिया। लेकिन शिव जी कहां मानने वाले थे। यह बात लगभग 1360 ई. की है। सिर्फ दो वक्त के भोजन पर नौकरी करने के लिए तैयार हो गए ।
एक दिन विद्यापति राजा के दरबार में जा रहे थे, उगना भी उनके साथ चल दिया। तेज गर्मी का समय था और धुप बहुत तेज थी, धुप की वजह से विद्यापति का गला सूखने लगा। और आस-पास जल का कोई स्रोत नहीं था। विद्यापति ने उगना से जल का प्रबंध करने को कहा। वहां न तो कोई दूर-दूर तक नदी थी ना ही कोई कुंआ। भगवान शिव कुछ दूर जाकर अपनी जटा खोलकर एक लोटा गंगा जल भर लाए।
विद्यापति ने जब जल पिया तो उन्हें गंगा जल का स्वाद लगा और वह आश्चर्य चकित हो उठे कि इस वन में जहां कहीं जल का स्रोत तक नहीं दिखता यह जल कहां से आया। कवि विद्यापति उगना पर संदेह हो गया कि यह कोई सामान्य व्यक्ति नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव हैं अतः उगना से उसका वास्तविक परिचय जानने के लिए जिद करने लगे। जब विद्यापति ने उगना को शिव कहकर उनके चरण पकड़ लिये तब उगना को अपने वास्तविक स्वरूप में आना पड़ा। उगना के स्थान पर स्वयं भगवान शिव प्रकट हो गये।
शिव ने कवि विद्यापति के साथ रहने की इच्छा जताई लेकिन उन्होने कहा के मैं तुम्हारे साथ उगना बनकर रहुंगा और मेरा वास्तविक परिचय किसी को मत बताना। विद्यापति ने भगवान शिव की शर्त मान ली लेकिन एक दिन उगना द्वारा किसी गलती पर कवि की पत्नी शिव जी को चूल्हे से जलती लकड़ी निकालकर पीटने लगी। उसी समय विद्यापति वहां आए और उनके मुंह से निकल गया के ये साक्षात भगवान शिव हैं, इन्हें तुम लकड़ी से मार रही हो। बल इतना सुनते ही भगवान शिव वहां से अंर्तध्यान हो गए।
इसके बाद तो विद्यापति पागलों की तरह उगना के नाम से वनों में घुमते हुए शिव को ढूंढने लगे। भक्त की ऐसी दशा देखकर शिव विद्यापति के सामने प्रकट हो गये और कहा कि मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता। उगना रूप में मैं जो तुम्हारे साथ रहा उसके प्रतीक चिन्ह के रूप में अब मैं शिवलिंग के रूप विराजमान रहूंगा। उसके बाद उस स्थान पर शिवलिंग प्रकट हो गया। जोकी आज उगना महादेव के नाम से प्रसिद्ध है।
तो ऐसे है भोले बाबा।