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भगवान शिव त्रिकाल दर्शी थे फिर भी उन्हे माता पार्वती द्वारा द्वार सुरक्षा के लिये खड़े किये गणेश जी का पता क्यों नहीं चला ?

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मित्र इस संबंध में एक मत यह है कि माता पार्वती जो स्वयं आदिशक्ति का रूप हैं, ने भगवान गणेश को अपने मैल से बनाया था, पार्वती त्रिगुण अर्थात सत्व, रजस और तमस का प्रतीक हैं. सम्पूर्ण प्रकृति इन्ही त्रिगुणों से बनी है. त्रिगुण से होने वाले दोष प्रकृति के कामकाज के लिए एक बाधा हैं. और यह दोष वही गणेश थे जिसे पर्वती ने द्वारपाल के रूप में खड़ा किया था. शिव शुद्ध चैतन्य हैं. जैसे सूर्य अंधकार नहीं पहचानता और इसे चीर देता है, ठीक उसी प्रकार शिव दोष नहीं पहचानते और उसका संहार कर देते हैं।

क्योंकि प्रक्रति में दोष का होना स्वभाविक है; अतः शिव ने दोष को ज्ञान से मिटा दिया. यहाँ हाथी का सिर् ज्ञान का प्रतीक है जिसे गणेश अर्थात दोष पर शिव ने लगाया, यही गणपति के मारे जाने और पुनः हाथी के सिर् से जीवित होनें का आध्यात्मिक अर्थ है।

में यह कहना चाहता हुँ कि पुराणों में लिखी गयी कोई बात निरर्थ नहीं है, यदि प्रभु श्री विष्णु चाहते तो रावण का वध वैकुण्ठ से ही सुदर्शन चक्र से कर देते परंतु राम अवतार, कृष्ण अवतार आदि लीलाएं प्रभु ने इस लिए रची हैं कि हम इनसे कुछ ज्ञान ले और कुछ सीख लें। और इसीलिए इन कथाओं का वर्णन पुराणों में भी है।

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