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12 ज्योतिर्लिंग का महत्व | Significance of 12 Jyotirlinga

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 12 jyotirling ka mahatva

श्रवण मास में शिव पूजा का अपना विशेष महत्व है , शिव भक्तो के शिव में रमने से संपूर्ण वातावरण शिव मे हो जाता है ऐसे समय में ये समझना और महत्वपूर्ण हो जाता है की ज्योतिषीय दृष्टिकोण से बारह ज्योतिर्लिंगों का क्या महत्व है , जिस तरह पूरा ब्रहमांड बारह राशियों में विभाजित है और शिव ने भी हमें अपने बारह ज्योतिर्लिंग दिए ये महज संयोग नहीं.



जिस तरह से हर जन्म कुंडली से जातक के इष्ट देवता का पता लगाया जा सकता है और उस इष्ट देवता का स्मरण और जप करने से उसके सारे कष्टों का निवारण होता है वैसे ही शिव के भक्त अपने इस इष्ट ज्योतिर्लिंग की जन कारी प्राप्त कर सकते है और नियमित रूप से उस ज्योतिर्लिंगा की आराधना करने से न सिर्फ हमारे समस्त पापो नाश होता है वरन हम सुखी , सम्रद्ध और शांति पूर्वक जीवन प्राप्त करते है, चूँकि हमारे इस ज्योतिर्लिंग का सम्बन्ध सीधे हमारी आत्मा से होता है इसलिए इस आत्मलिंग भी कहा जाता है.



ये बारह ज्योतिर्लिंग बारह राशियों से जुड़े होते है जिसका वर्णन निचे तालिका में दिया है , और फिर एक विशेष ज्योतिषीय गणना के जरिये इन बारह भावो में से एक भाव निकला जाता है और तत्पश्चात उस भाव में उपस्थित राशी से सम्बंधित ज्योतिर्लिंगा आपका अपना ज्योतिर्लिंग होता है.


इस विशेष ज्योतिर्लिंगा के नियमित दर्शन , स्मरण और अभिषेक से शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और हमारे समस्त दुखो का विनाश भी होता है . विशेष ज्योतिर्लिंगा (अत्मलिंग) का स्मरण महामंत्र “ॐ नमः शिवाय ” के आगे “नमः ” और फिर उक्त ज्योतिर्लिंग का नाम लगा कर किया जाता है , उदहारण के लिए किसी का अत्मलिंग रामेश्वरम है तो उनका ज्योतिर्लिंग मंत्र हुआ “ॐ नमः शिवाय नमः रामेश्वराय” या किसी का “सोमनाथ” है तो उनका ज्योतिर्लिंगा मंत्र हुआ “ॐ नमः शिवाय नमः सोमनाथय” .



तालिका :


मेष = रामेश्वरम

वृषभ = सोमनाथ

मिथुन = नागेश्वर

कर्क = ओम्कारेश्वर

सिंह = वैद्यनाथ

कन्या = मल्लिकार्जुन

तुला = महाकालेश्वर

वृश्चिक = घ्रिशनेश्वर

धनु = विश्वनाथ

मकर = भीमाशंकर

कुम्भ= केदारनाथ

मीन = त्र्यम्बकेश्वर



सिर्फ यही नहीं ग्रह दोष निवारण में भी सम्बंधित ज्योतिर्लिंग की आराधना न सिर्फ उस ग्रह के दोष को दूर कराती है वरन उसे और प्रबल बना कर श्रेष्ठ फल प्रदान कराती है. ज्योतिर्लिंगों का ग्रह से सम्बन्ध भी राशियों के जरिये ही है , जैसे मेष राशी सूर्य की उच्चा की राशी है अतः सूर्य से सम्बंधित दोष को दूर करने के लिए रामेश्वरम की आराधना सर्वश्रेष्ठ है वैसे ही चन्द्रमा की उच्चा की राशी वृषभ है और गुरु की कर्क जंहा श्री सोमनाथ और ओम्कारेश्वर , इसी तरह हर ग्रह के निवारण के लिए सम्बंधित ज्योतिर्लिंगा की आराधना की जा सकती है.


उदहारण की लिए जैसे श्रीराम भगवान् ने अपने पित्र दोष के निवारण के लिए दक्षिणेश्वर (रामेश्वरम) की स्थापना की और उससे मुक्ति प्राप्त की, ठीक इसी प्रकार से हर राशी का एक ग्रह से और उस ग्रह का ज्योतिर्लिंगा से सम्बन्ध है जो हमारे ग्रहों के निवारण के साथ हमें सुख और सम्रद्धि प्रदान करता है.

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