भयंकर विषैले नाग की शय्या पर निश्चिंत होकर बंद नेत्रों मे , मुख पर मुस्कान लिए , योगनिद्रा मे लीन रहना…..केवल विष्णु ही हो सकते हैं ।
माया के वशीभूत इस संसार को देखकर कोई लाभ नहीं क्योंकि यहां केवल दुःख, पीड़ा, संताप आदि ही हैं । वास्तव मे संसार रुपी माया के रचयिता , माया के हर खेल से भली भांति परिचित हैं । ईश्वर (चाहे शिव अथवा विष्णु) सुख दुःख, जन्म मृत्यु, मोह माया आदि से परे हैं ।
इसलिए वे अपनी आँखें बंद करके योगनिद्रा मे लीन रहते हैं । ठीक इसी कारण से महादेव भी अपने नेत्र बंद किए हुए समाधि मे लीन रहते हैं ।
परंतु सच्चिदानंद परमेश्वर (शिव / विष्णु) के नेत्र तभी खुलते हैं , वे अपनी योगनिद्रा व समाधि से तभी उठते हैं , जब उनके भक्तों पर संकट आता हैं । कई कथाओं मे हम सबने पढ़ा, सुना व देखा होगा कि जब - संसार पर आई किसी विपदा के समाधान के लिए - देवता गण, साधु मुनि आदि शिव अथवा विष्णु के समक्ष जाते हैं । तब वे अपनी आँखे खोलकर समस्या का निवारण करते हैं ।