महादेव अर्थात् भगवान शिव स्वयं किस देवता की पूजा करते हैं। यह प्रश्न सभी धार्मिक और आध्यात्मिक लोगों के ज़हन में जिज्ञासा बनकर उठता ही रहता होगा । स्वाभाविक भी है यह जानना की देवों के देव महादेव आख़िर किस भगवान को पूजते हैं, किस भगवान का स्मरण करते हैं, किस भगवान को जपते हैं।आइये जानते हैं इस दिलचस्प प्रश्न का उत्तर।
जब एक बार माँ पार्वती ने पूछ लिया था की आप तो स्वयं ईश्वर है, सबके पिता है और सबके स्वामी है, आप किसका निरंतर ध्यान करते रहते है?
शिव जी ने उत्तर दिया था:-
पुरुष प्रसिद्ध प्रकाश निधि प्रगट परावर नाथ ।
रघुकुलमनि मम स्वामी सोइ कहि सिव नायउ माथ ।।
जो परम पुरुष इस समस्त संसार का नाथ है, वो मेरे स्वामी रघुकुल में मणि श्रीराम है, उनको सदा नमस्कार करता हूँ।
आगे शंकर भगवान और भी कहते हैं की :-
कासी मरत जंतु अवलोकि । जासु नाम बल करउ असोकि ।।
सोइ मम इष्टदेव रघुबीरा । सेवत जाहि सदा मुनि धीरा ।।
और सुनो पार्वती! काशी में जब कोई जीव देह त्याग करता है तो मैं उसके कानों में अमृतमंत्र फूंक देता हूँ। इसी से उस जीव को मोक्ष प्राप्त हो जाता है। ये अमृत बस राम का नाम है और मेरे इष्ट मेरे सर्वस्व श्रीराम है जिनकीउपासना सदा सिद्ध ऋषि-मुनि किया करते है।
बंदउ बालरूप सोइ रामु । सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामु ।।
मंगल भवन अमंगल हारी । द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी ।।
पार्वती! मैं श्रीराम के बाल रूप की वंदना करता हूँ, जिनके नाम स्मरण मात्र से सारी सिद्धियां प्राप्त हो जाती है।
जो समस्त मंगलो के निवास स्थान अमंगलों का नाश करने वाले है ऐसे राजा दशरथ के आंगन में खेलने वाले श्रीराम को नमस्कार है।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्त्र नाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने ।।
राम, राम और केवल राम नाम सर्वोत्तम है पार्वती! सहस्त्र नामो से भी बढ़कर केवल एक राम का नाम है।
त्रिलोक में यदि प्रभु श्रीराम का कोई सबसे बड़ा भक्त या उपासक है तो वे हैं भगवान शिव जो ‘श्रीराम’ महामन्त्र का निरन्तर जप करते रहते हैं । भगवान शिव , रामजी के सेवक, स्वामी और सखा–तीनों ही हैं । आप सब जानते हैं की श्री रामजी की सेवा करने के लिए शिव जी ने हनुमान का रूप धारण किया। वानर का रूप उन्होंने इसलिए धारण किया कि अपने स्वामी की सेवा तो करूँ, पर उनसे चाहूँ कुछ भी नहीं; क्योंकि वानर को न रोटी चाहिए, न कपड़ा और न मकान। वह जो कुछ भी मिले, उसी से अपना निर्वाह कर लेता है।
भोलेबाबा तो सदा श्रीराम का ध्यान करते रहते है। इतना ध्यान की श्रीराम का साँवला रंग शिव जी के कर्पूर जैसे सफेद रंग पर चढ़ जाता है।
और सुंदरता देखिए की श्रीराम निरंतर शिवजी का ध्यान करते रहते है।
लिंग थापि बिधिवत करि पूजा । सिव समान प्रिय मोहि न दूजा ।।
शिवलिंग की स्थापना कर के विधिवत पूजा पूजा करता हूँ। शिव के समान और कोई दूसरा मुझे प्रिय नहीं है।
जब श्री राम जी रावण से युद्ध करने जा रहे थे तो
रामचन्द्रजी ने पहले रामेश्वर शिवलिंग का पूजन किया, फिर लंका पर चढ़ाई की। अत: भगवान शंकर रामजी के स्वामी हैं।
इसी प्रकार एक और प्रकरण के द्वारा हम इसको समझते हैं।रामेश्वर तीर्थ की व्याख्याएं भगवान् शिव एवं श्री विष्णु के मुख से भिन्न भिन्न रूप से निम्नलिखित प्रकार से कथित हैं।
श्री शिवजी कहते हैं , “रामेश्वर तु राम यस्य ईश्वरः” , अर्थात राम जिसके ईश्वर हैं ।
श्री विष्णु जी कहते हैं ,”रामेश्वर तु रामस्य यः ईश्वरः”, अर्थात जो राम के ईश्वर हैं ।
यही हरि और हर की पारस्परिकता है।
इसी हरि-हर एकात्म में सृष्टि व्याप्त है।